Ghazals of Sultan Akhtar (page 1)
नाम | सुल्तान अख़्तर |
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अंग्रेज़ी नाम | Sultan Akhtar |
जन्म की तारीख | 1940 |
जन्म स्थान | Patna |
ज़ंग-आलूद ज़बाँ तक पहूँची होंटों की मिक़राज़
ये जो हम अतलस ओ किम-ख़्वाब लिए फिरते हैं
वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़
तुझ को पाने के लिए ख़ाक-ए-तमन्ना हो जाऊँ
तिलिस्म-ख़ाना-ए-दिल में है चार-सू रौशन
तिलिस्म-ए-कार-ए-जहाँ का असर तमाम हुआ
तेरा ग़म तेरी आरज़ू कब तक
तन्हाइयों की बर्फ़ थी बिस्तर पे जा-ब-जा
तन्हाई की ख़लीज है यूँ दरमियान में
सिलसिला मेरे सफ़र का कभी टूटा ही नहीं
सरसब्ज़ मौसमों का असर ले गया कोई
साँस उखड़ी हुई सूखे हुए लब कुछ भी नहीं
सब का चेहरा पस-ए-दीवार-ए-अना रहता है
साअत-ए-मर्ग-ए-मुसलसल हर नफ़स भारी हुई
रक़्स-ए-ताऊस-ए-तमन्ना नहीं होने वाला
रक़्स करता है ब-अंदाज़-ए-जुनूँ दौड़ता है
पस-ए-ग़ुबार-ए-तलब ख़ौफ़-ए-जुस्तुजू है बहुत
नफ़स नफ़स इज़्तिराब में था
मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है
मिरी क़दीम रिवायत को आज़माने लगे
मिरे चारों तरफ़ ये साज़िश-ए-तस्ख़ीर कैसी है
मैं लड़खड़ाया तो मुझ को गले लगाने लगे
कुछ डूबता उभरता सा रहता है सामने
कोई भी शहर में खुल कर न बग़ल-गीर हुआ
किसी के वास्ते जीता है अब न मरता है
ख़्वाबों की लज़्ज़तों पे थकन का ग़िलाफ़ था
ख़्वाब आँखों से चुने नींद को वीरान किया
ख़ाना-बर्बाद हुए बे-दर-ओ-दीवार रहे
ख़ाक उड़ती है ख़रीदार कहाँ खो गए हैं
काम आती नहीं अब कोई तदबीर हमारी