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मुद्दत हुई राहत भरा मंज़र नहीं उतरा - सुलेमान ख़ुमार कविता - Darsaal

मुद्दत हुई राहत भरा मंज़र नहीं उतरा

मुद्दत हुई राहत भरा मंज़र नहीं उतरा

सावन का महीना मिरी छत पर नहीं उतरा

रौशन रहा इक शख़्स की यादों से हमेशा

गिर्दाब में ज़ुल्मत के मिरा घर नहीं उतरा

जिस आँख ने देखा तुम्हें देती है गवाही

तुम जैसा ज़मीं पर कोई पैकर नहीं उतरा

सच्चाई मिरे होंटों से उतरी नहीं हरगिज़

जब तक मिरे काँधों से मिरा सर नहीं उतरा

क़ुदरत की इबारात को पढ़ते रहे बरसों

मफ़्हूम मगर ज़ेहन के अंदर नहीं उतरा

नश्शा ही कुछ ऐसा था फ़ुतूहात का उस पर

जज़्बात के तौसन से सिकंदर नहीं उतरा

साहिल पे जो उतरा था सफ़ीनों को जला कर

सदियों से फिर ऐसा कोई लश्कर नहीं उतरा

उतरा नहीं नफ़रत के समुंदर में कभी मैं

मुझ में कभी नफ़रत का समुंदर नहीं उतरा

कोशिश तो बहुत की थी 'ख़ुमार' हम ने भी लेकिन

शीशे में वो इक शोख़ सितमगर नहीं उतरा

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In Hindi By Famous Poet Suleman Khumar. is written by Suleman Khumar. Complete Poem in Hindi by Suleman Khumar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.