हया भी आँख में वारफ़्तगी भी
हया भी आँख में वारफ़्तगी भी
बदन में प्यास लब पर ख़ामुशी भी
दरीचे बंद हों अच्छा है लेकिन
ज़रूरी है हवा भी रौशनी भी
मैं वाक़िफ़ हूँ तिरी चुप-गोइयों से
समझ लेता हूँ तेरी अन-कही भी
पहन लें लम्स की आँचें किसी दिन
पिघल जाए ये हद्द-ए-आख़िरी भी
किया करती है सज्दे मुझ को ठोकर
मुक़द्दस है मिरी आवारगी भी
तुम्हें खो कर भी तुम को पा चुका हूँ
मिरा हासिल मिरी ला-हासिली भी
यही इक मोड़ तक आना बिछड़ना
यही क़िस्मत तुम्हारी भी मिरी भी
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