गला रुँधा हो तो हम बात कर नहीं सकते
इशारों और किनायों से अपने मतलब को
बजाए कानों के आँखों पे थोप देते हैं
गला था साफ़ तो क्या हम ने तीर मारा था
यही कि नाम कमाया था यावा-गोई में
ग़ज़ल-सराई में या फ़लसफ़ा-तराज़ी में
मगर वो बात जो सच है अभी गले में है
गला रुँधा हो गला साफ़ हो तो फ़र्क़ ही क्या