डीप-फ़्रीज़
पिछली कितनी रातों से मैं ख़्वाब यही एक देख रहा हूँ
हाथ ये मेरे हाथ नहीं हैं पाँव ये मेरे पाँव नहीं हैं
इन के सहारे मैं चलता हूँ
सड़कों पर आवारगी कर के
झूटी सच्ची बातें अख़बारों में लिख कर
रात गए जब घर आता हूँ
काँच की आँखें
पत्थर के दाँतों का चौका
बंदर का दिल
उज़्व-ए-तनासुल लेकिन अपना
अपने आ'ज़ा इक इक कर के डीप-फ़्रीज़ में रख देता हूँ
बीवी की गोद में छुप कर सो जाता हूँ
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