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जो तेरे हुस्न में नर्मी भी बाँकपन भी है - सुलैमान अरीब कविता - Darsaal

जो तेरे हुस्न में नर्मी भी बाँकपन भी है

जो तेरे हुस्न में नर्मी भी बाँकपन भी है

वो कैफ़-ए-ताज़ा भी है नश्शा-ए-कुहन भी है

मुझे तो चैन से रहने दे ऐ दिल-ए-वहशी

कि दश्त भी है तिरे सामने चमन भी है

कहाँ की मंज़िल-ए-मक़्सूद रास्ता भी नहीं

सफ़र में साथ ख़ुदा भी है अहरमन भी है

वो एक लम्हा-ए-पर्रां वो एक साअ'त-ए-दीद

हिना ब-दस्त भी है लाला-पैरहन भी है

ब-चश्म-ए-शबनम-ए-गिर्यां अगर कोई देखे

तिरा लिबास ही ऐ गुल तिरा कफ़न भी है

वो एक गोशा-ए-जन्नत जिसे दकन कहिए

निगार शाइ'र-ए-बदनाम का वतन भी है

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In Hindi By Famous Poet Sulaiman Areeb. is written by Sulaiman Areeb. Complete Poem in Hindi by Sulaiman Areeb. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.