भेस क्या क्या न ज़माने में बनाए हम ने
भेस क्या क्या न ज़माने में बनाए हम ने
एक चेहरे पे कई चेहरे लगाए हम ने
इस तमन्ना में कि इस राह से तू गुज़रेगा
दीप हर राह में हर रात जलाए हम ने
दिल से निकली न ख़राश-ए-ग़म-ए-अय्याम की धूप
तेरे नाख़ुन से कई चाँद बनाए हम ने
दामन-ए-यार ने हक़ अपना जताया न कभी
अश्क उमडे भी तो पलकों में छुपाए हम ने
ख़ुद हुए ग़र्क़ ज़माने को भी ग़र्क़ाब किया
एक आँसू से वो तूफ़ान उठाए हम ने
तेरे पहलू से भी पहुँचे न तिरे पहलू तक
फ़ासले क़ुर्ब के गो लाख घटाए हम ने
चेहरे कत्बे सही कत्बों की इबारत पे न जा
अभी लफ़्ज़ों से कहाँ पर्दे उठाए हम ने
शेर कहने से न महबूब न दुनिया ही मिली
उम्र-भर शेर कहे शेर सुनाए हम ने
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