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वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा - सुलैमान अहमद मानी कविता - Darsaal

वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा

वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा

मिरी जान तेरे फ़िराक़ में कोई सोगवार नहीं रहा

तिरी आरज़ू कहीं खो गई मिरी जुस्तजू-ए-फ़ुज़ूल में

मुझे ऐन वक़्त विसाल में तिरा इंतिज़ार नहीं रहा

न ख़िरद रही न जुनूँ बचा दिल-ए-पुर-ग़ुरूर ये क्या हुआ

तुझे अपने आप पे ख़ुद भी अब ज़रा ए'तिबार नहीं है

दम-ए-अव्वलीं के वो सिलसिले वो तमाम कार-ए-जहाँ मिरे

रहे ना-तमाम कि राह में दम-ए-मुस्तआ'र नहीं रहा

तिरी बज़्म जो ये सजी नई यहाँ सारा हुस्न है अजनबी

कोई चश्म अब नहीं सुर्मगीं कोई गुल-एज़ार नहीं रहा

यहाँ मा'बदों के हुजूम में न बचा है कोई भी मय-कदा

किसे शहर में कहें हम-नवा कोई बादा-ख़्वार नहीं रहा

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In Hindi By Famous Poet Sulaiman Ahmad Mani. is written by Sulaiman Ahmad Mani. Complete Poem in Hindi by Sulaiman Ahmad Mani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.