तुम्हें रो कर बताना चाहते हैं
तुम्हें रो कर बताना चाहते हैं
कि हम भी मुस्कुराना चाहते हैं
मिसाल-ए-तिफ़्ल हैं अहल-ए-सियासत
ये हर इक चीज़ खाना चाहते हैं
सदा काफ़ी नहीं है कोचवाँ की
ये घोड़े ताज़ियाना चाहते हैं
ये तीनों वक़्त अपने पास रक्खो
कि हम चौथा ज़माना चाहते हैं
हमीं वो आख़िरी दीवार-ए-गिर्या
जिसे सारे गिराना चाहते हैं
कोई 'सानी' कहे उस बद-गुमाँ से
उसे हम वालिहाना चाहते हैं
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