किसी की याद में शमएँ जलाना भूल जाता है
किसी की याद में शमएँ जलाना भूल जाता है
कोई कितना ही प्यारा हो ज़माना भूल जाता है
किसी दिन बे-नियाज़ी उस की मुझ को मार डालेगी
ख़फ़ा करता है वो लेकिन मनाना भूल जाता है
रुख़-ए-रौशन पे ज़ुल्फ़ों का ये गिरना जान-लेवा है
और उस पर ये सितम दिलबर हटाना भूल जाता है
अगर है भूलना मुझ को किसी से प्यार कर लेना
नया बनता है जब रिश्ता पुराना भूल जाता है
इसी बाइ'स मैं सीने से उसे उड़ने नहीं देता
ये दिल ऐसा परिंदा है ठिकाना भूल जाता है
हमें है वस्ल की ख़्वाहिश मगर ये काम दुनिया के
मैं जाना भूल जाता हूँ वो आना भूल जाता है
किसी से क्या करूँ शिकवा मिले हैं ज़ख़्म ही ऐसे
कि जिन पर वक़्त भी मरहम लगाना भूल जाता है
कोई आसेब है शायद तुम्हारे शहर में 'सानी'
यहाँ पे रहने वाला मुस्कुराना भूल जाता है
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