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जज़्बों से फ़रोज़ाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार - सुहैल काकोरवी कविता - Darsaal

जज़्बों से फ़रोज़ाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार

जज़्बों से फ़रोज़ाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार

क्या हश्र-ब-दामाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार

रौशन है अजल और अबद उन की ज़िया से

ये रहमत-ए-यज़्दाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार

बढ़ने लगी कुछ और वहाँ आतिश-ए-जज़्बात

दिल में मेरे मेहमाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार

कर दी है लब ओ चश्म ने तस्दीक़ हमारी

हुस्न-ए-रुख़-ए-जानाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार

चिंगारियाँ उठती हैं तो लगती हैं हमें फूल

जादू-ए-बहाराँ हैं दहकते हुए रुख़्सार

ज़ुल्फ़ों की हवाएँ तो 'सुहैल' और ग़ज़ब हैं

अब आग का तूफ़ाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार

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In Hindi By Famous Poet Suhail Kakorvi. is written by Suhail Kakorvi. Complete Poem in Hindi by Suhail Kakorvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.