पहाड़ जैसे दिनों को तो काट लूँ लेकिन
निकल न पाऊँ मैं इक रात की गिरानी से
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(603) Peoples Rate This
हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं
जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला
ज़िंदगी जिस ने तल्ख़ की मेरी
इन दिनों तेज़ बहुत तेज़ है धारा मेरा
दस्त-बरदार हुआ मैं भी तलबगारी से
ख़िज़ाँ की आज़माइश हो गया हूँ
ज़रूरी कब है कि हर काम इख़्तियारी करें
जब कोई आलम-ए-शुहूद न था
कि ख़ुद-नुमाई न तश्हीर चाहते हैं हम
इस ज़मीन ओ आसमाँ पर ख़ाक डाल
सिर्फ़ थोड़ी सी है अना मुझ में