Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_10d0bc8a180f89169d7a471be63143ca, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ख़िज़ाँ की आज़माइश हो गया हूँ - सुहैल अख़्तर कविता - Darsaal

ख़िज़ाँ की आज़माइश हो गया हूँ

ख़िज़ाँ की आज़माइश हो गया हूँ

मैं इक जंगल की चाहत में हरा हूँ

मिरी कश्ती कभी ग़र्क़ाब की थी

अभी तक मैं समुंदर से ख़फ़ा हूँ

परिंदे हो गए नाराज़ मुझ से

कहा जब मैं भी उड़ना चाहता हूँ

कोई वहशत से भी मिलवाए मुझ को

मैं सहरा में अभी बिल्कुल नया हूँ

अभी इक रौशनी आई थी मिलने

सबब क्या है कि मैं बुझने लगा हूँ

यहाँ के पेड़ सारे दम-ब-ख़ुद हैं

ग़ज़ब है मैं ही काटा जा रहा हूँ

कोई पानी में कब तक रह सकेगा

मैं अश्कों से तो आँखों तक भरा हूँ

(566) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Suhail Akhtar. is written by Suhail Akhtar. Complete Poem in Hindi by Suhail Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.