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जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला - सुहैल अख़्तर कविता - Darsaal

जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला

जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला

उस ने तो मुझे ख़ोशा-ए-गंदुम से निकाला

रखा है मुझे आज तलक मौज में उस ने

जिस लहर को गिर्दाब-ओ-तलातुम से निकाला

ये भूल ही बैठा था ज़बाँ रखता हूँ मैं भी

सो ख़ुद को तिरे सहर-ए-तकल्लुम से निकाला

इस आदत-ए-ताख़ीर को इक उम्र है दरकार

मुश्किल से तबीअ'त को तक़द्दुम से निकाला

तदबीर को तक़दीर की ग़फ़लत से जगाया

उम्मीद को भी तोहमत-ए-अंजुम से निकाला

लगता था निकल ही नहीं पाऊँगा 'सुहैल' अब

उस ने तो मुझे एक तबस्सुम से निकाला

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In Hindi By Famous Poet Suhail Akhtar. is written by Suhail Akhtar. Complete Poem in Hindi by Suhail Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.