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जब कोई आलम-ए-शुहूद न था - सुहैल अख़्तर कविता - Darsaal

जब कोई आलम-ए-शुहूद न था

जब कोई आलम-ए-शुहूद न था

मैं भी इक ख़्वाब था वजूद न था

अपनी तख़्लीक़ से हुआ महदूद

वर्ना मैं जानता हुदूद न था

मुझ में भी लौ थी आग थी पहले

मेरा सरमाया सिर्फ़ दूद न था

जाने उस ने मुझे ख़रीदा क्यूँ

मैं ज़ियाँ ही ज़ियाँ था सूद न था

तर्ज़-ए-इज़हार ने किया मख़्सूस

ख़ास अशआर का वरूद न था

इक असीरी यहाँ थी शर्त-ए-शनाख़्त

और मैं बंदा-ए-क़ुयूद न था

तुझ से रंगीनी-ए-जहाँ है 'सुहैल'

पहले ये रंग-ए-हसत-ओ-बूद न था

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In Hindi By Famous Poet Suhail Akhtar. is written by Suhail Akhtar. Complete Poem in Hindi by Suhail Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.