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हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं - सुहैल अख़्तर कविता - Darsaal

हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं

हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं

वो लोग जिन की ज़रूरत थी सारे मर गए हैं

घरों से वो भी सदा दे तो कौन निकलेगा

है दिन का वक़्त अभी लोग काम पर गए हैं

कि आ गए हैं तिरी शोर-ओ-शर की महफ़िल में

हम अपनी अपनी ख़मोशी से कितना डर गए हैं

उन्हीं से सीख लें तहज़ीब राह चलने की

जो राह देने की ख़ातिर हमीं ठहर गए हैं

सभी को करते हैं मिल-जुल के रहने की तल्क़ीन

कुछ अपने आप में हम इस क़दर बिखर गए हैं

नहीं क़ुबूल हमें कामयाबी का ये जुनून

ये जानते भी हैं नाकामियों पे सर गए हैं

तो क्यूँ सताती है बिगड़े दिनों की याद कि हम

मुसालहत हुई दुनिया से अब सुधर गए हैं

हवा-ए-दश्त यहाँ क्यूँ है इतना सन्नाटा

वो तेरे सारे दिवाने बता किधर गए हैं

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In Hindi By Famous Poet Suhail Akhtar. is written by Suhail Akhtar. Complete Poem in Hindi by Suhail Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.