जाँ तन का साथ दे न तो दिल ही वफ़ा करे
जाँ तन का साथ दे न तो दिल ही वफ़ा करे
क्या रह गया है जिस का कोई तज़्किरा करे
सब देख सुन चुका मगर अब भी सफ़र में हूँ
क़दमों को कौन राहगुज़र से जुदा करे
आशुफ़्तगी का मेरी पता दे मिरा मज़ार
इक गर्द-बाद रोज़ वहाँ से उठा करे
मुद्दत हुई कि भूल गया मुझ को शहर-ए-यार
चुप लग गई मुझे तो वो बेचारा क्या करे
तर्क-ए-सफ़र पे राह से ये बद-दुआ' मिली
बिस्तर में तेरे पाँव का तलवा जला करे
सकता सा लग गया है मिरे यार को 'सुहैल'
आँखें हैं अश्क-बार न दिल ही दुआ करे
(441) Peoples Rate This