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शाम-ए-फ़िराक़ अपनी फ़रोज़ाँ न कर सके - सुग़रा सब्ज़वारी कविता - Darsaal

शाम-ए-फ़िराक़ अपनी फ़रोज़ाँ न कर सके

शाम-ए-फ़िराक़ अपनी फ़रोज़ाँ न कर सके

तारीक ज़िंदगी को दरख़्शाँ न कर सके

थे इस क़दर जुदाई के लम्हात सोगवार

कुछ भी तलाफ़ी-ए-ग़म-ए-हिज्राँ न कर सके

यूरिश ग़मों की ऐसी थी मुझ पे कि अल-अमाँ

कुछ राज़दारी-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ न कर सके

थी इस क़दर नवाज़िश-ए-पैहम कि अल-हफ़ीज़

कुछ एहतिमाम-ए-वुसअत-ए-दामाँ न कर सके

अपनी ही ज़िंदगी थी कुछ ऐसी ख़िज़ाँ-नसीब

तुम भी हमारे दर्द का दरमाँ न कर सके

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In Hindi By Famous Poet Sughra Sabzwari. is written by Sughra Sabzwari. Complete Poem in Hindi by Sughra Sabzwari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.