शाम-ए-फ़िराक़ अपनी फ़रोज़ाँ न कर सके

शाम-ए-फ़िराक़ अपनी फ़रोज़ाँ न कर सके

तारीक ज़िंदगी को दरख़्शाँ न कर सके

थे इस क़दर जुदाई के लम्हात सोगवार

कुछ भी तलाफ़ी-ए-ग़म-ए-हिज्राँ न कर सके

यूरिश ग़मों की ऐसी थी मुझ पे कि अल-अमाँ

कुछ राज़दारी-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ न कर सके

थी इस क़दर नवाज़िश-ए-पैहम कि अल-हफ़ीज़

कुछ एहतिमाम-ए-वुसअत-ए-दामाँ न कर सके

अपनी ही ज़िंदगी थी कुछ ऐसी ख़िज़ाँ-नसीब

तुम भी हमारे दर्द का दरमाँ न कर सके

(473) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sughra Sabzwari. is written by Sughra Sabzwari. Complete Poem in Hindi by Sughra Sabzwari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.