तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो
तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो
ये चाँद ये कहकशाँ ये तारे
यूँ ही चमकते रहेंगे सारे
यूँ ही ज़िया-बार होंगे दाइम
यही रहेगा निज़ाम क़ाएम
तुम आसमाँ को हो देखते क्या
करो नज़ारा दिल-ए-हज़ीं का
ग़म-ए-मोहब्बत के दाग़ देखो
ये टिमटिमाते चराग़ देखो
है चंद रोज़ा नुमूद उन की
नहीं है कुछ ए'तिबार-ए-हस्ती
ये शम्अ ख़ामोश हो न जाए
ये बख़्त-ए-बे-दार सो न जाए
तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो
यूँ ही सदा जल्वा-बार होगी
हज़ार क्या लाख बार होगी
हटा लो आँख अपनी चर्ख़ पर से
नज़र मिलाओ मिरी नज़र से
इन आँसुओं की बहार देखो
रवाँ है आबशार देखो
है चंद ही दिन की ये रवानी
रहेगी कब तक ये ज़िंदगानी
ये क़ल्ब ख़ूँ हो के बह न जाए
ये चश्मा बह बह के रह न जाए
तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो
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