ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा
ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा
एक दुश्वार रहगुज़र के सिवा
क्या मिला तिश्ना-ए-मोहब्बत को
एक महरूम सी नज़र के सिवा
इश्क़ के दर्द की दवा क्या है
सब समझते हैं चारा-गर के सिवा
कुछ नहीं ग़म-गुसारी-ए-अहबाब
एहतिमाम-ए-ग़म-ए-दिगर के सिवा
कितनी तन्हा थीं अक़्ल की राहें
कोई भी था न चारा-गर के सिवा
दौलत-ए-सज्दा हो सकी न नसीब
और भी दर थे तेरे दर के सिवा
कुछ नहीं है फ़ुसूँ-तराज़ी-ए-हुस्न
इश्क़ की शोख़ी-ए-नज़र के सिवा
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