वफ़ा की आख़िरी मंज़िल भी आ रही है क़रीब
वफ़ा की आख़िरी मंज़िल भी आ रही है क़रीब
जो उस जगह भी न तू मिल सके तो मेरे नसीब
फुग़ान-ए-हक़्क़-ओ-सदाक़त का मरहला है अजीब
दबे तो बंद-ओ-सलासिल उठे तो दार-ओ-सलीब
तिरे ख़याल का मस्कन चमन चमन का सफ़र
मिरी वफ़ा का नशेमन फ़क़त दयार-ए-हबीब
नज़र से बच के मिले हैं वो बारहा मुझ को
हज़ार बार हुआ है ये दिल नज़र का रक़ीब
उलझ न जाएँ कहीं और दिल के अफ़्साने
कहाँ हदीस-ए-मोहब्बत कहाँ बयान-ए-ख़तीब
न जाने कौन सी शय चश्म-ए-ग़मगुसार में थी
कि जिस को देख के लर्ज़ां हुआ है दस्त-ए-तबीब
अभी फ़सुर्दा है साक़ी तिरा 'तबस्सुम'-ए-लब
किसी की याद को ले आओ मय-कदे के क़रीब
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