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शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार - सूफ़ी तबस्सुम कविता - Darsaal

शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार

शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार

न जाने किस की निगाहों को ढूँडती है बहार

कभी फ़ुग़ाँ भी नशात-ओ-तरब का अफ़्साना

कभी हँसी भी तड़पते हुए दिलों की पुकार

न जाने किस की नशात-ए-क़दम से हैं महरूम

कि एक उम्र से सूने पड़े हैं राहगुज़ार

हज़ार हार किसी चश्म-ए-आश्ना के तुफ़ैल

उजड़ उजड़ के बसे हैं मोहब्बतों के दयार

अजीब हाल है बेताबी-ए-मोहब्बत का

शब-ए-विसाल की राहत में ढूँडती है क़रार

ये बर्क़-ए-हुस्न और उस पर ये तेरी ख़ू-ए-हिजाब

ये सैल-ए-इश्क़ और इस पर नज़र नज़र का शुमार

है इन की पुर्सिश-दर्द-ओ-अलम में भी पिन्हाँ

वो इक कसक कि समझते नहीं जिसे ग़म-ख़्वार

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In Hindi By Famous Poet Sufi Tabassum. is written by Sufi Tabassum. Complete Poem in Hindi by Sufi Tabassum. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.