नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
ये और बात है दुनिया नज़र न पहचाने
वो बज़्म देखी है मेरी निगाह ने कि जहाँ
बग़ैर शम्अ भी जलते रहे हैं परवाने
ये क्या बहार का जोबन ये क्या नशात का रंग
फ़सुर्दा मय-कदे वाले उदास मय-ख़ाने
मिरे नदीम तिरी चश्म-ए-इल्तिफ़ात की ख़ैर
बिगड़ बिगड़ के सँवरते गए हैं अफ़्साने
ये किस की चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ का करिश्मा है
कि टूट कर भी सलामत हैं दिल के बुत-ख़ाने
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