ख़ामोशी कलाम हो गई है
ख़ामोशी कलाम हो गई है
क्या हुस्न-ए-पयाम हो गई है
अब छोड़ दो तज़्किरा वफ़ा का
ये बात भी आम हो गई है
याद आई सहर को रात की बात
इक आन में शाम हो गई है
अब पूछ न चश्म-ए-शौक़ का हाल
टूटा हुआ जाम हो गई है
जिस शय पे पड़ी हैं तेरी नज़रें
क्या आली-मक़ाम हो गई है
लाई है नसीम किस का पैग़ाम
क्यूँ तेज़-ख़िराम हो गई है
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