जान दे कर वफ़ा में नाम किया
ज़िंदगी भर मैं एक काम किया
बे-नक़ाब आ गया सर-ए-महफ़िल
यार ने आज क़त्ल-ए-आम किया
आसमाँ भी उसे सता न सका
तू ने जिस दिल को शाद-काम किया
इश्क़-बाज़ी था काम रिंदों का
तू ने इस ख़ास शय को आम किया
अब के यूँही गुज़र गई बरसात
हम ने ख़ाली न एक जाम किया