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समझते हैं जो कमतर हर किसी को - सुदर्शन कुमार वुग्गल कविता - Darsaal

समझते हैं जो कमतर हर किसी को

समझते हैं जो कमतर हर किसी को

वो समझें तो सही अपनी कमी को

जहाँ में जुज़ ग़म-ओ-रंज-ओ-मुसीबत

मिला भी है अज़ीज़ो कुछ किसी को

कहें भी तो कहें अब क्या किसी से

सुनाएँ तो सुनाएँ क्या किसी को

हक़ीक़त में नहीं बनते किसी के

बनाते हैं जो अपना हर किसी को

न पा-ए-रफ़तन अब ने जा-ए-मा'दिन

कहाँ तक रोएँ अपनी बेबसी को

तअ'ज्जुब है समझने पर भी सब कुछ

न समझा आदमी ने आदमी को

ज़िया-ए-हज़रत-ए-'अनवर' ने 'रिफ़अत'

जिला बख़्शी है मेरी शाइ'री को

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In Hindi By Famous Poet Sudarshan Kumar Vuggal. is written by Sudarshan Kumar Vuggal. Complete Poem in Hindi by Sudarshan Kumar Vuggal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.