तेरी आँखों में हम ने क्या देखा
कभी क़ातिल कभी ख़ुदा देखा
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उल्फ़त का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े
दुनिया से वफ़ा कर के सिला ढूँढ रहे हैं
तेरे जाने में और आने में
अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है
दिल तो रोता रहे ओर आँख से आँसू न बहे
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया
इश्क़ है इश्क़ ये मज़ाक़ नहीं
ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही
आशिक़ी हो कि बंदगी 'फ़ाख़िर'