मेरे रुकते ही मिरी साँसें भी रुक जाएँगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
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हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
दुनिया से वफ़ा कर के सिला ढूँढ रहे हैं
दिल तो रोता रहे ओर आँख से आँसू न बहे
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
ज़िक्र जब होगा मोहब्बत में तबाही का कहीं
उल्फ़त का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े
आशिक़ी हो कि बंदगी 'फ़ाख़िर'
कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया
शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया
हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब
ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं
तुम न घबराओ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देख कर