मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
क्या मिरे हक़ में फ़ैसला देगा
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तुम न घबराओ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देख कर
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
ज़िक्र जब होगा मोहब्बत में तबाही का कहीं
मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही
फ़लसफ़े इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह
उल्फ़त का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया
हम से पूछो न दोस्ती का सिला
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
मेरे दुख की कोई दवा न करो