हम से पूछो न दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा
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तेरी आँखों में हम ने क्या देखा
मेरे दुख की कोई दवा न करो
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया
उल्फ़त का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े
तेरे जाने में और आने में
हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं
कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया
अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है