देखने वालो तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हें तो देखने वालों पे हँसी आती है
Faiz Ahmad Faiz
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Habib Jalib
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हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं
तेरी आँखों में हम ने क्या देखा
ये सिखाया है दोस्ती ने हमें
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं
अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें
दिल तो रोता रहे ओर आँख से आँसू न बहे
मेरे रुकते ही मिरी साँसें भी रुक जाएँगी
मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही
कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया