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तुम न घबराओ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देख कर - सुदर्शन फ़ाकिर कविता - Darsaal

तुम न घबराओ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देख कर

तुम न घबराओ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देख कर

मैं न मर जाऊँ तुम्हारी चश्म-ए-तर को देख कर

ज़ख़्म ताज़ा कर रहा हूँ चारागर को देख कर

रास्ता मैं ने बदल डाला ख़िज़र को देख कर

ज़िंदगानी इक फ़रेब-ए-दाइमी है सर-ब-सर

मुझ पे ये ज़ाहिर हुआ शाम-ओ-सहर को देख कर

गरचे उन से कोई उम्मीद-ए-वफ़ा मुझ को नहीं

जी बहल जाता है फिर भी नामा-बर को देख कर

आज इंसाँ से है इंसाँ बरसर-ए-पैकार यूँ

अल-अमाँ शैताँ पढ़े ख़ू-ए-बशर को देख कर

आदमी में आदमियत का निशाँ बाक़ी नहीं

बेच डाला इस ने ईमाँ सीम-ओ-ज़र को देख कर

आसमाँ तक तो हम ऐ 'रिफ़अत' रहे गर्म-ए-ख़िराम

उस से आगे चल न पाए राहबर को देख कर

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In Hindi By Famous Poet Sudarshan Faakir. is written by Sudarshan Faakir. Complete Poem in Hindi by Sudarshan Faakir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.