शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया
शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया
क़ातिल को आज अपने ही घर ले के आ गया
ता-उम्र ढूँढता रहा मंज़िल मैं इश्क़ की
अंजाम ये कि गर्द-ए-सफ़र ले के आ गया
नश्तर है मेरे हाथ में काँधों पे मय-कदा
लो मैं इलाज-ए-दर्द-ए-जिगर ले के आ गया
'फ़ाकिर' सनम-कदे में न आता मैं लौट कर
इक ज़ख़्म भर गया था इधर ले के आ गया
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