मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही
मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही
यक़ीं करो न करो मेहरबाँ सुनो तो सही
चलो ये मान लिया मुजरिम-ए-मोहब्बत हैं
हमारे जुर्म का हम से बयाँ सुनो तो सही
बनोगे दोस्त मिरे तुम भी दुश्मनो इक दिन
मिरी हयात की आह-ओ-फ़ुग़ाँ सुनो तो सही
लबों को सी के जो बैठे हैं बज़्म-ए-दुनिया में
कभी तो उन की भी ख़ामोशियाँ सुनो तो सही
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