सीलन
हम ने अपने साथ की आख़िरी शब
बूढ़े पेड़ की झीनी छतरी के नीचे
चाँद की भीगी भीगी किरनों के साथ बिताई थी
मैं ने अपने अश्कों का रुख़ मोड़ दिया था
तुम ने पलकों से दो मोती मेरे कंधे पर टाँक दिए थे
और माथे पर कभी न मिटने वाली
मोहर लगाई थी एक गीले बोसे की
अगली शब
उस पेड़ के नीचे मैं तन्हा था
छूट गया था तुम से जो रूमाल वहाँ पर ले आया था
बरसों बअ'द इसी शब का
जानी-पहचानी ख़ुशबू वाली भीगा-पन
नज़्मों की एक भूली हुई सी कॉपी में
सीलन बन कर उभरा है
(497) Peoples Rate This