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हम न सही - सुबोध लाल साक़ी कविता - Darsaal

हम न सही

हम न सही तुम न सही

मगर अब भी कोई लड़का

किसी लड़की के घर के सामने

चिलचिलाती धूप में खड़ा होगा

किसी बहाने

तुम न सही मैं न सही

मगर अब भी कोई लड़की

घर की खिड़की तक आने में

झिझकती होगी

कि इस पागल लड़के की

हौसला-अफ़ज़ाई न हो जाए

मैं न सही तुम न सही

मगर वो लड़का अब भी

मिस करता होगा

वो चिलचिलाती धूप

और वो लड़की अब भी

मिस करती होगी

वो बेबाक हौसला

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In Hindi By Famous Poet Subodh Lal Saqi. is written by Subodh Lal Saqi. Complete Poem in Hindi by Subodh Lal Saqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.