कुछ बूंदों ने मिल कर
मेरी हथेली पर
छोटी सी एक झील बनाई
जिस में
पूरे चाँद का अक्स उतर आया
वहशी मन ने उकसाया
चाँद को मैं ने क़ैद कर लिया
मुट्ठी में
सारा पानी फिसल गया
चाँद
मेरे क़ब्ज़े से निकल गया
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सुनहरा ही सुनहरा वादा-ए-फ़र्दा रहा होगा
मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा
मुझ को आज न सोने देना
हवस
ज़बाँ को अपनी गुनहगार करने वाला हूँ
ये भी हुआ कि फ़ाइलों के दरमियाँ मिलीं
हम न सही
मैं किसी कोने में
मेरे अंदर
लम्बी ख़ामोशी की साज़िश को हराए कोई
इन्द्र-धनुष बन जाएँ
डोर