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आँख चुरा कर निकल गए हुश्यारी की - सुबोध लाल साक़ी कविता - Darsaal

आँख चुरा कर निकल गए हुश्यारी की

आँख चुरा कर निकल गए हुश्यारी की

समझ गए तुम भी मौक़े की बारीकी

दरिया पार सफ़र की जब तय्यारी की

मौसम ने हर बार बड़ी ग़द्दारी की

अब लगता है मुड़ के देख तो सकता था

आख़िर हद भी होती है ख़ुद्दारी की

बार बार आकाश ने की आतिश-बाज़ी

रात मनाया हम ने जश्न-ए-तारीकी

शायद सिर्फ़ उजाला कर के बुझ जाए

शायद निय्यत बदल जाए चिंगारी की

धड़कन को लग़्ज़िश की छूट नहीं बिल्कुल

दिल ने इतनी सख़्त हिदायत जारी की

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In Hindi By Famous Poet Subodh Lal Saqi. is written by Subodh Lal Saqi. Complete Poem in Hindi by Subodh Lal Saqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.