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ज़ब्त कर ग़म को कि जीने का हुनर आएगा - सुभाष पाठक ज़िया कविता - Darsaal

ज़ब्त कर ग़म को कि जीने का हुनर आएगा

ज़ब्त कर ग़म को कि जीने का हुनर आएगा

बअ'द पतझड़ के बहारों का सफ़र आएगा

राह सहरा की चला है तो ये भी सुन ले तू

सोचना छोड़ दे रस्ते में शजर आएगा

इतना ख़ुश भी न हो तूफ़ान गुज़र जाने पर

ये समुंदर है यहाँ फिर से भँवर आएगा

जिस पे हर सम्त से ही आते रहे हों पत्थर

कैसे उस पेड़ पे फिर कोई समर आएगा

आइना होना ही काफ़ी नहीं है कमरे में

साफ़ होगा वो तभी अक्स नज़र आएगा

ले के इमदाद का झूटा सा बहाना कोई

मुझ को औक़ात बताने वो इधर आएगा

अपने आग़ोश में ले लूँगा 'ज़िया' मैं उस को

रात को चाँद जो दरिया में उतर आएगा

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In Hindi By Famous Poet Subhash Pathak Ziya. is written by Subhash Pathak Ziya. Complete Poem in Hindi by Subhash Pathak Ziya. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.