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दुश्मनी में ही सही वो ये करम करता रहा - सुभाष पाठक ज़िया कविता - Darsaal

दुश्मनी में ही सही वो ये करम करता रहा

दुश्मनी में ही सही वो ये करम करता रहा

आइना मुझ को दिखा कर ऐब कम करता रहा

वो तक़ाज़ा-ए-मोहब्बत था तो मैं ने उफ़ न की

फिर तो ज़ालिम उम्र भर दिल पे सितम करता रहा

ख़ैरियत ही पूछने आएगा तू ये सोच कर

मेरा दिल बीमार ख़ुद को ए सनम करता रहा

दुश्मनों की दुश्मनी भी उस के आगे कुछ नहीं

साज़िशें जो हर क़दम पर हम-क़दम करता रहा

लाडले ने ख़त के बदले पैसे भिजवाए मगर

बाप मिलने की तमन्ना दम-ब-दम करता रहा

झूट तू कर के दिखावा बन गया सच्चा वहाँ

और सच कोने में बैठा आँख नम करता रहा

लिख न पाया अब तलक तू बात दिल की ऐ 'ज़िया'

सिर्फ़ इन का उन का अफ़्साना रक़म करता रहा

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In Hindi By Famous Poet Subhash Pathak Ziya. is written by Subhash Pathak Ziya. Complete Poem in Hindi by Subhash Pathak Ziya. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.