दुश्मनी में ही सही वो ये करम करता रहा
दुश्मनी में ही सही वो ये करम करता रहा
आइना मुझ को दिखा कर ऐब कम करता रहा
वो तक़ाज़ा-ए-मोहब्बत था तो मैं ने उफ़ न की
फिर तो ज़ालिम उम्र भर दिल पे सितम करता रहा
ख़ैरियत ही पूछने आएगा तू ये सोच कर
मेरा दिल बीमार ख़ुद को ए सनम करता रहा
दुश्मनों की दुश्मनी भी उस के आगे कुछ नहीं
साज़िशें जो हर क़दम पर हम-क़दम करता रहा
लाडले ने ख़त के बदले पैसे भिजवाए मगर
बाप मिलने की तमन्ना दम-ब-दम करता रहा
झूट तू कर के दिखावा बन गया सच्चा वहाँ
और सच कोने में बैठा आँख नम करता रहा
लिख न पाया अब तलक तू बात दिल की ऐ 'ज़िया'
सिर्फ़ इन का उन का अफ़्साना रक़म करता रहा
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