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कभी जुदा दो बदन हुए तो दिलों पे ये दो अज़ाब उतरे - सोज़ नजीबाबादी कविता - Darsaal

कभी जुदा दो बदन हुए तो दिलों पे ये दो अज़ाब उतरे

कभी जुदा दो बदन हुए तो दिलों पे ये दो अज़ाब उतरे

बिछड़ने वाले की याद आई मिलन के आँखों में ख़्वाब उतरे

बढ़ी है फ़िक्र-ए-मआ'श जब से मिरे ख़यालों की वादियों में

न उस के चेहरे का चाँद उभरा न आरिज़ों के गुलाब उतरे

उलझ गया ज़िंदगी के काँटे में इत्तिफ़ाक़न हमारा दामन

ज़मीं के गोले पे सैर करने को हम जो ख़ाना-ख़राब उतरे

जिन्हों ने माँगी उन्हें तो दी ही गई जहाँ में ख़ुशी की दौलत

बग़ैर माँगे भी काहिलों पर फ़लक से ग़म बे-हिसाब उतरे

चली जो आँधी तो हर कली ने झुका के सर को ये इल्तिजा की

चमन के मालिक हमारे रुख़ से अभी न रंग-ए-शबाब उतरे

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In Hindi By Famous Poet Soz Najeebabadi. is written by Soz Najeebabadi. Complete Poem in Hindi by Soz Najeebabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.