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वफ़ाओं के इरादे वुसअ'त-ए-मंज़िल में रहते हैं - सोज़ बरेलवी कविता - Darsaal

वफ़ाओं के इरादे वुसअ'त-ए-मंज़िल में रहते हैं

वफ़ाओं के इरादे वुसअ'त-ए-मंज़िल में रहते हैं

पस-ओ-पेश-ए-सितम पेश-ओ-पस-ए-महमिल में रहते हैं

नुक़ूश-ए-रह-रव-ए-मंज़िल रह-ए-मंज़िल में रहते हैं

चकोरों के निशान-ए-ग़म मह-ए-कामिल में रहते हैं

ग़म-ए-इश्क़-ए-हक़ीक़ी बे-असर हो जाए ना-मुम्किन

नुमायाँ लग़्ज़िश-ओ-रा'शा कफ़-ए-क़ातिल में रहते हैं

जो अरमाँ लब पे आ के मोजिब-ए-क़त्ल-ए-ग़रीबाँ हैं

वही अरमान पोशीदा दिल-ए-क़ातिल में रहते हैं

हज़ारों कश्तियाँ उस पार हो जाती हैं साहिल के

हमारे वास्ते तूफ़ाँ छुपे साहिल में रहते हैं

हमेशा ज़िंदगी कटती रही तारीक रातों में

न जाने ज्वार-भाटे क्यूँ हमारे दिल में रहते हैं

ज़माना के हवादिस से न डर हरगिज़ मुक़ाबिल आ

जो अहल-ए-दिल हैं दुनिया में वही मुश्किल में रहते हैं

मय-ए-रंगीं सुरूद-ए-शोख़ रक़्स-ए-दिल-रुबा शब को

सहर को 'सोज़' फ़ुर्क़त के निशाँ महफ़िल में रहते हैं

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In Hindi By Famous Poet Soz Barelvi. is written by Soz Barelvi. Complete Poem in Hindi by Soz Barelvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.