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वो नग़्मगी का ज़ाइक़ा उस की सदा में था - सोहन राही कविता - Darsaal

वो नग़्मगी का ज़ाइक़ा उस की सदा में था

वो नग़्मगी का ज़ाइक़ा उस की सदा में था

फैला हुआ वो नूर सा सारी फ़ज़ा में था

चुप चाप बे-ज़बाँ कोई मेरी अना में था

वर्ना कहाँ ये हौसला मेरी बिना में था

वो मेरे साँस की धनक में झूलता था कौन

किस का था रंग-रूप जो हुस्न-ए-ख़ला में था

जो छू रहा था मेरे बदन ही को बार बार

तेरे ख़ुलूस का कोई झोंका हवा में था

जाँ से गुज़र के भी कभी शायद न ये खुले

जादू ये किस निगाह का मेरी निगह में था

कल रात बह रहा था जो बारिश के नाम से

मेरा ही एक अश्क-ए-तर सारी घटा में था

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In Hindi By Famous Poet Sohan Rahi. is written by Sohan Rahi. Complete Poem in Hindi by Sohan Rahi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.