तुम ने महसूस कहाँ मेरी ज़रूरत की है
तुम ने महसूस कहाँ मेरी ज़रूरत की है
मेरे जज़्बों की कहाँ तुम ने हिमायत की है
हाल पूछा न किसी ने मेरे आँसू पोंछे
क्या किसी से भी नहीं मैं ने मोहब्बत की है
ख़ुश थी मैं छोटे से घर में भी तिरे प्यार के साथ
मैं ने कब तुझ से किसी महल की चाहत की है
सोचती हूँ मैं यही बैठ के तन्हाई में
क्या यक़ीं कर के तिरा मैं ने हिमाक़त की है
आज फिर शहर में उट्ठेगा कोई हंगामा
आज सच कहने की इक शख़्स ने जुरअत की है
कितना रोई हूँ तिरे ब'अद तुझे क्या मालूम
मैं ने लम्हों की अदा इस तरह क़ीमत की है
किस तरह मिलता 'सिया' सारे ज़माने से मिज़ाज
बात कुछ और नहीं बात तबीअत की है
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