सुलगते दश्त का मंज़र हुई हैं
सुलगते दश्त का मंज़र हुई हैं
ये आँखें हिज्र में बंजर हुई हैं
तुम्हारी आरज़ू को मिल गया घर
हमारी हसरतें बे-घर हुई हैं
मोहब्बत में तड़प आहें अज़िय्यत
ये सब दुश्वारियाँ अक्सर हुई है
निगाहों में कोई तस्वीर उभरी
ये आँखें आँसुओं से तर हुई हैं
नहीं मैं वो नहीं ऐसे न देखो
बहुत तब्दीलियाँ अंदर हुई है
सितारों पर खुले हैं राज़ दिल के
तिरी बातें ही बस शब-भर हुई हैं
सिया मायूस बेबस ख़्वाहिशें कुछ
मिरे अपने लहू से तर हुई हैं
(544) Peoples Rate This