फ़सील-ए-दर्द को मैं मिस्मार करने वाली हूँ
फ़सील-ए-दर्द को मिस्मार करने वाली हूँ
मैं आँसुओं की नदी पार करने वाली हूँ
मुझे ख़ुदा की रज़ा से है वास्ता हर दम
मैं ख़ुद-नुमाई से इंकार करने वाली हूँ
ये उस की मर्ज़ी कि इक़रार वो करे न करे
मैं आज ख़्वाहिश-ए-इज़हार करने वाली हूँ
वो जिस ने की है हमेशा मुख़ालिफ़त मेरी
उसी को अपना मदद-गार करने वाली हूँ
वफ़ा की राह में ख़ुद को तबाह कर के मैं
तमाम शहर को बेदार करने वाली हूँ
कोई न डाले निगाह-ए-ग़लत कि मैं अपने
निहत्ते हाथों को तलवार करने वाली हूँ
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