क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी
क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी
वहीं कहीं नक़्श-ए-पा की सूरत पड़ी हुई ज़िंदगी मिलेगी
मिलेगी हाँ रंग में ख़िज़ाँ के बहार डूबी हुई मिलेगी
तलाश कर ख़ार-ज़ार-ए-ग़म में कोई तो कोपल हरी मिलेगी
चराग़-ए-सज्दा जला के देखो है बुत-कदा दफ़्न ज़ेर-ए-काबा
हुदूद-ए-इस्लाम ही के अंदर ये सरहद-ए-काफ़िरी मिलेगी
हबाब अश्कों के ढालता जा कमाल-ए-शीशा-गरी दिखा तू
तुझे इन्हीं नाज़ुक आबगीनों में दिल की तस्वीर भी मिलेगी
हुदूद-ए-दैर-ओ-हरम से हट कर झुका जबीन-ए-नियाज़ अपनी
ग़रज़ से जब बे-नियाज़ होगा तो उजरत-ए-बंदगी मिलेगी
फ़लक पर इक चाँद ईद का रोज़ देखने को कहाँ से लाऊँ
नज़र की सर-मस्तियाँ न पूछो कहीं सर-ए-बाम ही मिलेगी
उठा भी अब पर्दा-ए-तकल्लुफ़ समा भी जा दिल में दर्द बन कर
रहूँगा कब तक मैं यूँही बेहिस कभी मुझे ज़िंदगी मिलेगी
है जोर-ए-सय्याद ही का सदक़ा चमन की हंगामा-आफ़रीनी
तबाहियाँ जिस जगह पे होंगी वहीं कहीं ज़िंदगी मिलेगी
वही लब-ए-ख़ुश्क पर कुछ आहें वही उन आँखों में कुछ नमी सी
मुझे मुक़द्दर से जब मिलेगी मता-ए-बे-माइगी मिलेगी
रहें सलामत सताने वाले ये हश्र तो रोज़ होगा बरपा
'सिराज' लेकिन सितम-रसीदों की सब्र की दाद भी मिलेगी
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