निगाह-ए-यार यूँही और चंद पैमाने
निगाह-ए-यार यूँही और चंद पैमाने
अब अपने होश में आने न पाएँ दीवाने
मोहब्बत अस्ल में क्या चीज़ है ख़ुदा जाने
दहन में जितनी ज़बानें हैं उतने अफ़्साने
जो अश्क-ए-सुर्ख़ है नामा-निगार है दिल का
सुकूत-ए-शब में लिखे जा रहे हैं अफ़्साने
जहान-ए-होश में ता-हश्र तब्सिरे होंगे
ज़बाँ में अपनी ये क्या कह रहे थे दीवाने
शुगून उस निगह-ए-मय-फ़रोश से ले कर
हम आप वज़्अ करेंगे हज़ार मयख़ाने
न पूछो आह-ए-मोहब्बत की रख़्ना-अंदाज़ी
ख़ुदा गवाह है अपने हुए हैं बेगाने
हर अश्क-ए-सुर्ख़ है दामान-ए-शब में आग का फूल
बग़ैर शम्अ के भी जल रहे हैं परवाने
क़दम क़दम पे सदा-ए-शिकस्त-ए-तौबा है
निसार-ए-लग़्ज़िश-ए-साक़ी हज़ार पैमाने
फ़रेब-ए-हुस्न-ए-समाअ'त तिरी दुहाई है
हक़ीक़तों की जगह छीनते हैं अफ़्साने
बुलंद-ओ-पस्त नज़र फ़र्क़-ए-ज़ाहिरी है 'सिराज'
बने तो हैं इन्हीं आबादियों से वीराने
(695) Peoples Rate This