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मदद ऐ ख़याल-ए-माज़ी ज़रा आइना उठाना - सिराज लखनवी कविता - Darsaal

मदद ऐ ख़याल-ए-माज़ी ज़रा आइना उठाना

मदद ऐ ख़याल-ए-माज़ी ज़रा आइना उठाना

मैं बदल गया हूँ ख़ुद ही कि बदल गया ज़माना

मिरे ख़ालिक़-ए-गुलिस्ताँ ये समाँ न फिर दिखाना

कि ख़ुद अपनी रौशनी में नज़र आए आशियाना

ये है जिद्दत-ए-तख़य्युल तो भला कहाँ ठिकाना

मिलें बिजलियों के तिनके तो बनाऊँ आशियाना

ये क़फ़स क़फ़स न रहता नज़र आता आशियाना

मिरे बाल-ओ-पर से पहले मिरे दिल का टूट जाना

ये न पूछ फूल बरसे कि गिरी दिलों पे बिजली

ज़रा देख आइने में कभी अपना मुस्कुराना

मिरा एक एक आँसू ग़म-ए-फ़िक्र-ए-दो-जहाँ है

कभी ख़ुश्क करना दामन कभी आस्तीं सुखाना

रग-ओ-पै में बर्क़ दौड़े यही लुत्फ़-ए-ज़िंदगी है

मिरे मुस्कुराने वाले यूँही मुस्कुराए जाना

मिरे शाम-ए-ग़म की ज़ीनत मिरे आँसुओं के तारो

तुम्हें काम क्या सहर से कहीं तुम न डूब जाना

कहूँ क्या 'सिराज' तुम से जो गुज़र रही है दिल पर

ये क़फ़स की ज़िंदगी और ये बहार का ज़माना

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In Hindi By Famous Poet Siraj Lakhnavi. is written by Siraj Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Siraj Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.