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लिया जन्नत में भी दोज़ख़ का सहारा हम ने - सिराज लखनवी कविता - Darsaal

लिया जन्नत में भी दोज़ख़ का सहारा हम ने

लिया जन्नत में भी दोज़ख़ का सहारा हम ने

आशियाँ बर्क़ के तिनकों से सँवारा हम ने

हुस्न-ए-आईना-ए-ग़ैरत को सँवारा हम ने

न लिया इश्क़ में अपना भी सहारा हम ने

नक़्श फ़ानी ही रहा रंग-ए-बक़ा चढ़ न सका

उम्र भर आलम-ए-इम्काँ को सँवारा हम ने

हर नफ़स मर्सिया था साअ'त-ए-बेदारी का

लाख सोई हुई क़िस्मत को पुकारा हम ने

हाए ऐ मस्लहत-ए-वक़्त दुहाई तेरी

कर ली ना-अहल की तन्क़ीद गवारा हम ने

फिर भी पेशानी-ए-तूफ़ाँ पे शिकन बाक़ी है

डूबते वक़्त भी देखा न किनारा हम ने

धड़कनें दिल की भी शाहिद हैं ख़ुदा भी है गवाह

हम पे जब वक़्त पड़ा तुम को पुकारा हम ने

साया-ए-गुल में कहाँ फ़ितरत-ए-आज़ाद को चैन

हर तड़पती हुई बिजली को पुकारा हम ने

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In Hindi By Famous Poet Siraj Lakhnavi. is written by Siraj Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Siraj Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.